हिमाचली लोककथा
एक बार एक आदमी घर लौट रहा था. रास्ते में उसने देखा बकरा कटा हुआ था और लोग उसका माँस खरीद रहे थे. उस आदमी ने बकरे का सिर खरीद लिया.
सिर को लेकर वह घर की तरफ चल पड़ा.
आधी रात हो गयी थी. वो आदमी अपने रास्ते चला जा रहा था. जैसे ही वो कब्रिस्तान से गुजरा उसके कंधे पर रखा बकरे का सिर मिमियाने लगा.
आदमी समझ गया की ये "छलावा" नाम का प्रेत था. जो उसे परेशान कर रहा था. लेकिन वो उसकी काट जानता था.
उसने बकरे के सिर को जूठा कर दिया. तभी मिमियाने की आवाज आनी बंद हो गयी और वो आदमी अपने रास्ते चल दिया.
एक बार एक आदमी घर लौट रहा था. रास्ते में उसने देखा बकरा कटा हुआ था और लोग उसका माँस खरीद रहे थे. उस आदमी ने बकरे का सिर खरीद लिया.
सिर को लेकर वह घर की तरफ चल पड़ा.
आधी रात हो गयी थी. वो आदमी अपने रास्ते चला जा रहा था. जैसे ही वो कब्रिस्तान से गुजरा उसके कंधे पर रखा बकरे का सिर मिमियाने लगा.
आदमी समझ गया की ये "छलावा" नाम का प्रेत था. जो उसे परेशान कर रहा था. लेकिन वो उसकी काट जानता था.
उसने बकरे के सिर को जूठा कर दिया. तभी मिमियाने की आवाज आनी बंद हो गयी और वो आदमी अपने रास्ते चल दिया.
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